आधुनिक इतिहास हिन्दू महासभा

आधुनिक इतिहास हिन्दू महासभा

आज भारतीय जनता पार्टी बेशक हिंदूवादी पार्टी मानी जाती हो, लेकिन वास्तविकता यह है कि आजादी की लड़ाई में हिन्दू महासभा ही हिन्दुओं की पार्ट मानी जाती थी।

सन 1915 में   स्थापित अखिल भारत हिन्दू महासभा को ही हिन्दू राष्ट्रवादी संगठन माना जाता है आज जिन विनायक वीर सावरकर जी का नाम बीजेपी निरंतर भुना रही है, वही वीर सावरकर  हिन्दू महासभा के अध्यक्ष और केशव बलिराम हेडगेवार उपसभापति रहे है। इस संगठन के कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके हिन्दू महासभा के संस्थापक बालकृष्ण शिवराम मुंजे ने  राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना की। बालकृष्ण शिवराम मुंजे संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के राजीतिक गुरु थे।

सन 1915 में मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में हरिद्वार में हिंदू महासभा को स्थापना की गईइसके एक साल बाद 1916 में तत्कालीन कांग्रेस के अम्बिका चरण मजूमदार की अध्यक्षता और मुस्लिम लीग के अध्यक्ष मोहम्मद अली जिन्ना के बीच लखनऊ समझौता हुआ। कांग्रेस के इस समझौते की वजह से ही देश के सभी प्रांतों में मुसलमानों को विशेष अधिकार और संरक्षण प्राप्त हुए।

उस समय हिंदू महासभा ने सन् 1917 में हरिद्वार में राजा नंदी कासिम बाजार की अध्यक्षता में अपना अधिवेशन करके कांग्रेस-मुस्लिम लीग समझौते तथा चेम्सफोर्ड योजना का तीव्र विरोध किया। हिन्दू महासभा ने आजादी के लड़ाई में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। अंग्रेजों की स्वाधीनता आंदोलन और क्रांतिकारियों का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध आंदोलन किये।

वर्ष 1925 में कलकत्ता नगरी में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में हिन्दू महासभा का अधिवेशन हुआ। हिन्दू महासभा ने देश और समाज के साथ हिन्दुओं के अधिकारों की लम्बे समय तक लड़ाई लड़ी है। 1926 में जब देश में पहली बार चुनाव होने जा रहे थे तो अंग्रेजों ने असेम्ब्लियों में मुसलमानों के लिए स्थान आरक्षित कर दिए तो हिन्दू महासभा ने इसका और पृथक निर्वाचन के सिद्धांत का पुरजोर विरोध किया।

जब अंग्रेजों का साइमन कमीशन, रिफार्म एक्ट में सुधार के लिए भारत आया, तो आजादी की लड़ाई में कांग्रेस की तरह ही सक्रिय भूमिका निभा रही हिन्दू महासभा ने भी कांग्रेस के कहने पर इसका बहिष्कार किया। आजादी की लड़ाई में हिन्दू महासभा की यह बड़ी कुर्बानी थी कि जब लाहौर में हिंदू महासभा के अध्यक्ष लाला लाजपत राय स्वयंसेवकों के साथ कमीशन के बहिष्कार के लिए एकत्र हुए। पुलिस के लाठी प्रहार मे लाला लाजपत रॉय को चोट आई और उनकी मृत्यु हो गई।

सन् 1937 में वीर सावरकर, रत्नागिरी की नजरबंदी से मुक्त होकर आए। वीर सावरकर ने सन् 1937 में अपने प्रथम अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हिंदू ही इस देश के राष्ट्रीय वासी  हैं और आज भी अंग्रेजों को भगाकर स्वतंत्रता उसी प्रकार प्राप्त कर सकते हैं, जिस प्रकार भूतकाल में उनके पूर्वजों ने मुगलों, तुर्कों और पठानों को परास्त करके की थी।

1915-52 के प्रथम लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने अखिल भारतीय हिन्दू महासभा की ‘राष्ट्रीय दल’ के रूप में मान्यता दी थी। इसे ‘घोड़ा’ और ‘घुड़सवार’ चुनाव चिह्न प्रदान किया गया था।

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